BHRAM KA PULINDA (भ्रम का पुलिंदा) by Rajeev Patel
हिंदी संस्करण
*भ्रम का पुलिंदा* लेखक : राजीव पटेल *****************************
भ्रम वंशियों द्वारा अभी तक जितने भी लिखीत साक्ष्य उपलब्ध है वे सभी कागज की पाण्डुलिपि के रूप में हैं। आज समग्र शिक्षित वर्ग को पता है कि कागज का प्रथम अविष्कार विश्व में चीन ने किया था, जिसका नाम उसने झी (ZHI) रखा था। समाज और भाषा के विकास क्रम में वह झी चीन से सिल्क रास्ते से चलकर अरब देशों में पहुंचा था, जहां उस झी का नामकरण अरबी भाषा में कागज हुआ। अब वही कागज अरब से जब यूरोपीय बाजार में पहुंचता है, तो उस कागज का नामकरण रोमण भाषा में पेपर हो जाता है। लेकिन वही कागज अब अरब के तुर्को द्वारा भारतीय बाजार में आता है तो भारत के भ्रमवंशी लोग उस कागज नाम को संस्कारित करना उचित नहीं समझते हुए उसी अरबी नाम के साथ कागज को अंगीकार करना उचित समझे। ऐसा प्रतित होता है कि भ्रम वंशियों को भारत की सम्यक संस्कृति वाली पुरखों की भाषा से परहेज था, लेकिन यहां उसे अरब के तुर्को की भाषा से परहेज नहीं था। अब भारत में अरबी भाषा का आगमन कब हुआ, इसकी जानकारी तो सभी पाठक को जरूर होगा। इन सभी बातों से स्पष्ट हो जाता है कि मुस्लिम शासन काल में भारत में कागज आया है और उसी कागज पर भ्रम भाटों ने बादशाहों के संरक्षण में भ्रम का पुलिंदा तैयार किया, जो आज सबों के मानस-पटल पर बैठकर तांडव कर रहा है। - राजीव पटेल
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