Brahmanvad ki Aad Me Gulamgiri: Jotirao Phule - Jotirao Phule
1873 में जोतीराव फुले द्वारा लिखित यह किताब भारत के दलित-बहुजनों की मुक्ति का घोषणापत्र है। आज से डेढ़ सदी पहले फुले के जो सरोकार थे, वे आज भी हमारे सरोकार होने चाहिए। आज भी आबादी का बड़ा हिस्सा – शूद्र और अतिशूद्र – हाशिए पर है और समाज और सत्ता प्रतिष्ठानों में उनका प्रतिनिधित्व बहुत कम है। ब्राह्मणवादी मिथकों का कुप्रभाव समाज पर अब भी हावी है और वे सामाजिक विभाजन तथा गहन शैक्षणिक व आर्थिक असमानता का पोषण कर रहे हैं। अगर हम चाहते हैं कि इन सरोकारों पर ध्यान दिया जाए, अगर हम चाहते हैं कि हमारा समाज बदले तो हमें फुले की गुलामगिरी को उसकी समग्रता में स्वीकार करना होगा – जैसी है, ठीक वैसे ही। यह एक कड़वी खुराक है जिसे हमें निगलना ही होगा, एक दर्पण है, जिसमें हमें अपना चेहरा देखना ही होगा। तभी हम अपने समाज को न्यायपूर्ण बनाने की बात सोच सकते हैं।